रक्षा बंधन भारतीय संस्कृति का एक पवित्र और लोकप्रिय त्योहार है, जिसे प्रेम, विश्वास और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्यतः भाई-बहन के अटूट बंधन और प्यार का पर्व है, लेकिन इसकी शुरुआत, इतिहास और सामाजिक महत्व इससे कहीं ज्यादा गहराई और विविधता लिए हुए है।
रक्षा बंधन कब से मनाया जाता है?
रक्षा बंधन का इतिहास बेहद पुराना है और इसकी जड़ें वैदिक काल, पुराणों, महाभारत और कई ऐतिहासिक घटनाओं में पाई जाती हैं। यह त्योहार हर वर्ष श्रावण मास (सावन महीने) की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी (रक्षासूत्र) बांधती हैं और क्योंकि यह सावन की पूर्णिमा को आता है, इसे श्रावणी या “ऋषि पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक काल और ऐतिहासिक संदर्भ
- वैदिक काल:
रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा वैदिक युग से जुड़ी है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, यज्ञ आदि के समय ऋषि-मुनि और ब्राह्मण अपने शिष्यों और यजमानों को रक्षासूत्र बांधते थे ताकि उनकी रक्षा हो और वे अनिष्ट से सुरक्षित रहें। कालांतर में यह रक्षा सूत्र भाई-बहन के संबंध का खास प्रतीक बन गया। - देवासुर संग्राम (इंद्र-इंद्राणी कथा):
भविष्य पुराण व अन्य ग्रंथों के अनुसार, एक बार देवताओं और दानवों के मध्य युद्ध हुआ। जब इन्द्र देवताओं की ओर से युद्ध में हारने लगे, तो उनकी पत्नी शची (इंद्राणी) ने गुरु बृहस्पति की सलाह पर सावन पूर्णिमा के दिन उनकी कलाई में रक्षा सूत्र बांधा। इसके प्रभाव से इन्द्र की विजय हुई। यह पहला ऐतिहासिक प्रसंग है जब किसी पत्नी ने पति की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधा और इसे बाद में अन्य रिश्तों में भी अपनाया गया। - महाभारत काल:
इस पर्व का सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से ज्ञात प्रसंग महाभारत से जुड़ा है। एक बार भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली कट गई थी, तब द्रौपदी ने परेशान होकर अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर कृष्ण की अंगुली पर बांध दिया। कृष्ण ने बदले में जीवनभर द्रौपदी की रक्षा का वचन दिया और बाद में कौरव सभा में चीरहरण के समय यही वचन निभाया। - यम-यमुना कथा:
एक अन्य कथा के अनुसार, मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यमुना के बीच रक्षा बंधन के धागे के माध्यम से अमरता और भाई-बहन के अनूठे प्रेम का वर्णन मिलता है। यमुना ने यमराज को राखी बांधी थी, जिससे खुश होकर उन्होंने बहन को अमरता का वरदान दिया7। - राजपूत इतिहास (रानी कर्णावती और हुमायूं):
मध्यकालीन भारतीय इतिहास में रानी कर्णावती (चित्तौड़) ने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजकर उनके द्वारा अपनी और अपनी प्रजा की रक्षा की अपील की थी। हुमायूं ने राखी की लाज रखते हुए रानी और चित्तौड़ राज्य की रक्षा की थी। इस घटना ने राखी के बंधन को धार्मिक और सामाजिक सीमाओं से ऊपर उठाकर मानवीय मूल्यों का प्रतीक बना दिया।
रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है?
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
- पवित्र बंधन का प्रतीक:
रक्षा बंधन मूलतः भाई-बहन के पवित्र प्रेम और निस्वार्थ समर्पण का उत्सव है। बहनें विश्वास और दुआओं के साथ भाई की कलाई में राखी बांधती हैं और भाई उनकी सुरक्षा का वचन देते हैं। यह रिश्ता केवल रक्त संबंधी भाई-बहन तक सीमित नहीं; किसी को भी भाई-बहन मानकर राखी बांधी जा सकती है यानी मित्र को भी, समर्पित गुरु को भी या मुंहबोले भाई को भी। - रक्षा और विश्वास:
राखी एक सम्मानजनक दायित्व का संकेतक है—एक तरफ बहन अपने भाई की खुशहाली के लिए प्रार्थना करती है, वहीं भाई बहन की जिंदगीभर रक्षा का संकल्प लेता है। समाज में यह आपसी विश्वास, दायित्वबोध और अटल रिश्ते का भाव भरता है। - विविधता और समरसता:
भारत में रक्षा बंधन न केवल हिंदू समाज, वरन जैन, सिख व कुछ मुस्लिम वर्गों में भी समरसता, सौहार्द और सामाजिक समन्वय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। कई जगहों पर वृक्षों, पुरोहितों, सैनिकों इत्यादि को भी रक्षा-सूत्र बंधने की परंपरा है ताकि वे समाज की रक्षा करें। - रक्षा सूत्र की व्यापकता:
वैदिक काल में सिर्फ भाई-बहन ही नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य, राजा-प्रजा, देवी-देवता, पत्नी-पति, वृक्ष-मनुष्य, सभी के संबंधों को रक्षा सूत्र के माध्यम से सुरक्षित और पवित्र किया जाता था। आज भी ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बांधते हैं, सैनिकों से बहनें रक्षा सूत्र बंधवाती हैं—रक्षा बंधन का यह व्यापक अर्थ इसे एक सामाजिक पर्व बनाता है।
आधुनिक महत्व
रक्षा बंधन आज केवल पारंपरिक पर्व नहीं, बल्कि भाई-बहन के निस्वार्थ प्रेम और सामाजिक जिम्मेदारियों की गहराई की पहचान है। भाई-बहन इस दिन पुरानी नाराजगियां भूलकर अपने रिश्ते को नया अर्थ और मजबूती देते हैं। त्योहार केवल राखी या उपहार का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि बचपन, विश्वास, त्याग और प्रेम की निशानी है, जो जीवनभर साथ निभाने की संस्कृति को गहराता है।
परंपरा और आयोजन-विधि
- रक्षा बंधन के दिन, बहनें स्नान करके पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी, चंदन, रोली, चावल, मिठाई, दीपक आदि रखे होते हैं।
- भाई की दाहिनी कलाई में राखी बांधने के बाद, बहन तिलक लगाती है, आरती उतारती है और मिठाई खिलाती है।
- भाई अपनी सामर्थ्य के अनुसार बहन को उपहार देता है और उसकी जीवनभर रक्षा की प्रतिज्ञा करता है।
- पूजा के बाद सभी परिवारजनों के साथ भोजन आदि किया जाता है। यह दिन सामाजिक और पारिवारिक मेल-मिलाप का भी प्रतीक है।
निष्कर्ष
रक्षा बंधन एक व्यापक सामाजिक, धार्मिक और भावनात्मक महत्व वाला त्योहार है, जिसकी शुरुआत प्राचीन काल की रक्षा सूत्र परंपरा और पौराणिक कथाओं से हुई है। इसका स्वरूप समय के साथ बदला, लेकिन भाव वही रहे—प्रेम, दायित्व, सुरक्षा और विश्वास। रक्षा बंधन रिश्तों की मिठास, त्याग और समाज में एकता-सद्भाव की निशानी है, जो भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का जीवंत उदाहरण है।